धीरेन्द्र अस्थाना
अखिलेश ने फैसला किया था कि विधायक निधि के पैसे से राज्य के विधायक 20 लाख रुपये तक की गाड़ी खरीद सकेंगे. इस फैसले के बाद विधायक निधि के करीब सौ करोड़ रुपये गाड़ियों के खरीदने पर ही खर्च हो जाते, लेकिन विवाद इतना बढ़ा की अखिलेश को अपना फैसला वापस लेना पड़ा.
विधायक निधि में हर विधायक को करीब डेढ़ करोड़ रुपये मिलते हैं और ये रकम क्षेत्र में विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए दी जाती है.बसपा ने इस पर कटाक्ष भी किया है, कि जिस तरह तुगलक ने 1327 ई. में अपनी मुर्खता के चलते देश की राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद कर दिया और कुछ समय बाद पुनः दिल्ली को राजधानी बना दिया, ठीक उसी तरह अखिलेश भी अपने फैसलों से कुछ ऐसा ही व्यक्त कर रहे हैं|
अभी पिछले महीने की बात है अखिलेश यादव ने यूपी में बिजली की समस्या से राहत दिलाने के लिए शाम सात बजे से मॉल और बड़ी दुकानों को बंद करने का फैसला किया था, लेकिन चौतरफा विरोध के बाद चौबीस घंटे भी नहीं लगे और उसे वापस ले लिया.
ऐसे में सवाल यही है कि क्या क्या कमजोर मुख्यमंत्री हैं अखिलेश सिंह यादव ? फैसला लेकर वापस लेने की नौबत क्यों आ रही है ?
सरकार चलाते हुए सौ दिन से ज्यादा बीतने के बाद विरोधी अखिलेश को कमजोर मुख्यमंत्री तक कह रहे हैं लेकिन अखिलेश चाहते हैं कि उनके विवादित फैसलों पर कोई बहस न हो.
प्रदेश की जनता ने एक युवा को मुख्यमंत्री पद पर बेहद उम्मीदों के साथ बिठाया था, ऐसे में अगर बार-बार उनके पैसलों की वजह से उन पर उँगलियाँ उठ रही हैं तो सवाल उठाना लाजमी है| जिनमें से मुख्य सवाल हैं-
(1) ऐसे कौन से चापलूस अफसर हैं जो मुख्यमंत्री को इस तरह के फैसले लेने का सुझाव देते हैं?
(2) यदि पार्टी की किरकिरी कराने पर आमादा चापलूस अफसर मुख्यमंत्री को बेतुके फैसले लेने के सुझाव देते हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखा दिया जाता?
(3) क्या मुख्यमंत्री अपने विवेक से फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं?
(4) मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया कोई भी फैसला 24 घंटे में क्यों बदल दिया जाता है?
great sir
ReplyDeleteabhi politics mein young hai na to... buddhe support nahin karte
Beta umar sahi kah rahe ho ab jaise aaj k yuva hai unhe buddho k hi sahare ki jarurat hai.........
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