Thursday, July 19, 2012

‘काका’ ने कहा ‘अलविदा’

अपने समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना का आज मुंबई में निधन हो गया. उन्होंने अपने घर पर अंतिम सांस ली. उनके पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी. खन्ना लंबे समय से बीमार चल रहे थे. कल सुबह 11 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा.


राजेश खन्ना बीते 1 अप्रैल से बीमार थे. कमजोरी की शिकायत के चलते उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हालांकि उन्हें चार दिनों में ही डॉक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी दे दी थी. राजेश से अलग रह रही उनकी पत्नी डिम्पल कपाडिय़ा बीमारी के बाद से ही उनकी देखभाल कर रही थी. उनकी बेटियां ट्विंकल, रिंकी, दामाद अक्षय कुमार और समीर शरण भी उनके साथ ही थे. 69 साल के अभिनेता को 23 जून को लीलावती अस्पताल में दोबारा भर्ती कराया गया था. तब उन्हें दो हफ्ते बाद अस्पताल से छुट्टी मिली थी. कमजोरी की शिकायत के कारण उन्हें शनिवार को लीलावती अस्पताल में तीसरी बार भर्ती कराया गया. लेकिन मंगलवार का डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी थी. 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना है.

1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में आखिरी खत नामक फिल्म में काम किया था.
इसके बाद राज, बहारों के सपने, औरत के रूप जैसी कई फिल्में उन्होंने की. लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में आराधना से मिली. एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया. 1971 में राजेश खन्ना ने कटी पतंग, आनंद, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, अंदाज नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराये रखा. बाद के दिनों में दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम, हमशक्ल जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं.राजेश खन्ना ने डिंपल से 1973 में शादी की थी और 1984 में वो अलग हो गए थे. राजेश खन्ना ने 90 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया. 1991 में वे नई दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर संसद सदस्य चुने गये. 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर पर अपनी दूसरी पारी शुरू की. आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, जाना, वफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली.

खून से लेटर लिखा करती थीं लड़कियां
किसी जमाने में करोडों जवां दिलों की धड़कन रहे हिन्दी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना ने अभिनय के अलावा फिल्म निर्माता और नेता के रूप में भी लोकप्रियता हासिल कीं. वह बॉलीवुड के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्हें देखने के लिए लोगों की कतारें लग जाती थीं और युवतियां अपने खून से उन्हें पत्र लिखा करती थीं. राजेश खन्ना ने कुल 163 फिल्मों में काम किया जिनमें 106 फिल्मों में वह नायक रहे और 22 फिल्मों में उन्होंने सहनायक की भूमिका अदा की. इसके अलावा उन्होंने 17 लघु फिल्मों में भी काम किया.

आनंद मरा नहीं आनंद मरते नहीं
बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता. जिंदादिली की नई परिभाषा गढऩे वाला हिन्दी सिनेमा का आनंद अब नहीं रहा लेकिन आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं. राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा. ऋषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर (लिम्फोसकोर्मा ऑफ इंटेस्टाइन) पीडि़त किरदार को जिस ढंग से उन्होंने जिया, वह भावी पीढ़ी के कलाकारों के लिए एक नजीर बन गया.

शोक की लहर
काका के निधन की खबर फैलते ही सैंकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसक उनके बांद्रा में कार्टर रोड स्थित उनके घर ”आशीर्वाद” के बाहर एकत्र हो गए. पीएमओ : राजेश खन्ना के निधन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दुख व्यक्त किया. नरेंद्र मोदी : राजेश खन्ना जी लोगों के दिलों पर राज करते थे, वे महान व्यक्ति थे. उनके आत्मा को शांति मिले!

स्मृति ईरानी : आरआईपी राजेश खन्ना…गुड बाय!

कैलाश खेर : हमारे पिता की पीढ़ी के सुपर स्टार इस दुनिया से चले गए. वे इस दुनिया के बाहर भी सुपरस्टार पुकारे जाएंगे. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे!

सुभाष घई : राजेश खन्ना के निधन से मुझे गहरा आधात लगा है, वे इस उम्र में मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे.

आशा पारेख : अभिनेता के रुप में वे सबसे महान थे. अब वे हमारे बीच नहीं हैं. हम लोगों के लिए दुख की घड़ी है.

आशा भोसले : उनके करोड़ों फैंस थे. वे जमीन से जुड़े इंसान थे. मुझे आज भी याद है, लड़कियां ही नहीं शादी शुदा महिलाएं भी काका को खून से खत लिखती थीं.

मौसमी चटर्जी : राजेश खन्ना ने अपने ही फेमस डायलॉग जिंदगी बड़ी होनी चाहिए…लंबी नहीं को चरितार्थ किया. मुझे यह विश्वास करने में कुछ समय लगेगा कि काका अब जिंदा नहीं है.

हेमा मालिनी : मुझे राजेश खन्ना से साथ काम करने की कुछ यादें आज भी ताजी हैं. आज हर किसी के लिए दुख का दिन है. अंदाज, प्रेमनगर इन दो फिल्मों में काका से साथ काम किया. काका निधन हिंदी फिल्म उद्योग के लिए बहुत बड़ी क्षति है.


Monday, July 16, 2012

महंगाई से बचने के लिए करते हैं डाइटिंग

कई बार बातों ही बातों में हम किसी गंभीर सवाल का भी मजाकिया जवाब देकर माहौल को खुशनुमा बना देते हैं. कई बार ऐसा करना लोगों को अच्छा लगता है, तो कई बार यह आदत भी बन जाती है. अगर आपको सवाल का जवाब आता है, तो ठीक और यदि आप बाल की खाल निकालने में हैं माहिर, तो और भी अच्छा.

आइवीएफ तकनीक से क्या समझते हैं?

आइवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन. नि:संतान दंपतियों के लिए इस तकनीक को एक वरदान के रूप में देखा जा रहा है. इस तकनीक के जरिए महिला में कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है. इस महत्वपूर्ण तकनीक की खोज रॉबर्ट एडवर्डस ने की थी, जिसके लिए उन्हें चिकित्सा विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. इससे जन्मे पहले बच्चे का नाम लुईस ब्राउन था, जिसका जन्म 25 जुलाई, 1978 को मैनचेस्टर में हुआ था.

आम बोलचाल की भाषा में आइवीएफ से जन्मे बच्चों को टेस्ट ट्यूब कहा जाता है.

रिकॉर्ड के मुताबिक पूरे देश में फिलहाल आइवीएफ के 400-500 के बीच क्लिनिक्स हैं और इनमें हर साल एक लाख दंपति आते हैं. आइवीएफ के लिए हेल्दी स्पर्म और एग डोनर्स की जरूरत होती है. हालांकि इस तकनीक से स्वस्थ बच्चे के जन्म को लेकर सवाल भी खड़े होते रहे हैं, लेकिन हाल के कुछ वर्षो में इसमें कई सुधार भी हुए हैं.

पिछले साल यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के वैज्ञानिकों की टीम ने एक नया सफल प्रयोग किया है, जिसमें बताया गया कि अब स्वस्थ बच्चे की मां बनने की संभावना कहीं ज्यादा हो गयी है. अब इस नयी तकनीक के जरिए बच्चा पाने के इच्छुक दंपती स्वस्थ भ्रूण का चयन कर सकेंगे. प्रत्येक दंपती के लिए आइवीएफ प्रयोगशाला में आठ से दस भ्रूण विकसित किए जाते हैं. उसके बाद भ्रूण द्वारा ग्लूकोज अवशोषण के आधार पर इनमें से एक भ्रूण का चयन कर महिला के गर्भाशय में स्थांतरित कर दिया जाता है. आइवीएफ तकनीक से बच्चे के जन्म पर दो लाख रुपये से अधिक का खर्च आ सकता है.


और ये रहे इसी सवाल पर आपके मजेदार जवाब

आइवीएफ का अर्थ है- इंस्टीट्यूट ऑफ वेरी फीस. इसके तहत संस्थानों में दाखिले के नाम पर मोटे डोनेशन वसूले जाते हैं.
मोमिना, जमशेदपुर

इस तकनीक से जनसंख्या नियंत्रित की जाती है.
अंकित, रांची

इवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) का नया वजर्न है आइवीएफ, जिससे फर्जी वोटों को पकड़ा जाता है.

मोनू, गया

डाइटिंग क्यों करते हैं?

आपने कई लोगों को अपना वजन कम करने के लिए डाइटिंग करते देखा या सुना होगा. यानी मोटापा कम करने के लिए अपने आहार को कम कर देना. डाइटिंग को लेकर सभी के अपने-अपने राय हो सकते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो खाना कम खाने से वजन नहीं घटता. आप क्या खाते हैं, यह बात आपके वजन को घटाने और बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती है.

अमेरिका के हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञों का इस बारे में कहना है कि सिर्फ कैलोरी पर ध्यान देने से कोई स्लिम नहीं हो जाता. सही वजन कायम रखने के लिए पौष्टिक और उच्च गुणवत्ता का भोजन करना चाहिए. विशेषज्ञों का मानना है कि वजन कोई एक दिन में नहीं बढ़ता, बल्कि इसे बढ़ने में कई साल लगते हैं.


हममें से ज्यादातर लोग शरीर में बढ़ी हुई चर्बी को कम करने के लिए केवल एक उपाय जानते हैं और वह है डाइटिंग करना. उन्हें लगता है कि जिस तरह अनाप-सनाप खाने-पीने से चर्बी बढ़ जाती है, उस के विपरीत खाना-पीना छोड़ दें तो चर्बी कम भी हो जायेगी. लेकिन विशेषज्ञों की राय में भूखा रहने से शरीर को मिलनेवाली ऊर्जा की सप्लाई बंद हो जाती है.

यह भी उतना ही खतरनाक है, जितना जरूरत से ज्यादा अनावश्यक चर्बी का बढ़ना. डॉक्टरों की राय में वजन कम करने के लिए बेहतर है संतुलित आहार लेना और व्यायाम की आदत डालना. आहार में दूध, फल-सब्जियों को शामिल करना और ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीना बेहतर है.
और ये रहे इसी सवाल पर आपके मजेदार जवाब

कमरतोड़ महंगाई से बचने के लिए हमें डाइटिंग करना पड़ता है.

हिमांशु शेखर (गया), मनिषा (मीरगंज), संजीव (मुजफ्फरपुर)

फाइटिंग से पहले डाइटिंग बेहद जरूरी प्रक्रिया है, जिससे दुश्मनों को हराया जाता है.

योगेश कुमार, भागलपुर

तितलियों के लिए त्रासदी वर्ष

नमीयुक्त ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव किस हद तक पड़ सकता है? क्या आपने कभी इस बात का अंदाजा लगया है? वैज्ञानिकों के मुताबिक, 2012 इसी तरह का एक वर्ष है.

इंसानों के लिए न सही, लेकिन तितलियों के लिए यह बहुत बुरा साबित होने वाला है. उनका कहना है कि 36 वर्षो के बाद ऐसा होगा, जब 2012 में नमीयुक्त ग्रीष्मकालीन ऋतु की वजह से तितलियों की आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी. बटरफ्लाई संरक्षण संस्था के प्रमुख के मुताबिक, नमीयुक्त मौसम के कारण तितलियों की कई प्रजातियां पहले ही खत्म हो चुकी हैं. उनका कहना है कि इस तरह के मौसम तितलियों के प्रजनन, उन्हें उड़ने और अंडा देने से रोकता है.

इसका असर उनकी आबादी वृद्धि पर पड़ता है. 2007 में व्यापक बाढ़ के कारण भी उन्हें काफी नुकसान हुआ था. गौरतलब है कि इस साल के अप्रैल महीने को सदी का सबसे नमीयुक्त महीना माना गया. यही वह महीना होता है जब नर और मादा तितलियां एक साथ रहते हैं. यह उनेक प्रजनन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण होता है. इसी दौरान उन्हें भोजन, नर तितली और अंडे देने के लिए जगह की तलाश के लिए निकलना पड़ता है.

लेकिन, नमीयुक्त वातावरण होने के कारण वे पूरा महीना पत्तियों के बीच छिपी रहती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि बात सिर्फ इसी साल की नहीं है. अगले वर्ष भी उनकी कई प्रजातियां खत्म हो सकती हैं, क्योंकि उनकी उड़ान अवधि के दौरान वर्षा कम हो रही है. यही अवधि उनके प्रजनन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होती है. एक आंकड़े के मुताबिक, साल 2010 की अपेक्षा 2011 में लगभग 11 फीसदी तितलियों की संख्या में कमी आयी है, जो कि चिंता की बात है.

पसंद हैं पौराणिक किरदार डिंपी महाजन

डिंपी महाजन मॉडलिंग से कहानी चंद्रकांता की तक के सफर के बार े में बताएं? -यह यात्रा बड़ी रो


चक रही है। कोलकाता से मुंबई आने तक कई मुश्किलें भी आईं। राहुल महाजन से शादी के बाद हमारे


रिश्ते में कुछ कड़वाहट भी आई। इसके बावजूद मैं हिम्मत नहीं हारी। मुङो मेरी मेहनत का फल कहानी चंद्रकांता की में नागिन ज्वाला की भूमिका को पाकर मिल गया। हालांकि इच्छाधारी नागिन का किरदार एक पौराणिक कथा से प्रेरित है, लेकिन वर्तमान समय में भी इस किरदार को दर्शक पसंद करेंगे।

कहानी चंद्रकांता की की मौजूदा कहानी के बारे में बताएं? -पहले यह फैंटेसी कॉस्ट्यूम ड्रामा था, लेकिन कहानी में नया ट्विस्ट आने के बाद इसमें इच्छाधारी नाग-नागिन के प्रसंग डाल दिए गए हैं। इससे कहानी में एक नया रंग आ गया है। कहानी का ताना-बाना नागिन ज्वाला और डाकू मंगल सिंह के इर्द-गिर्द बुना गया है।

नागिन ज्वाला की भूमिका के बारे में क्या कहेंगी? -सहारा-वन टेलीविजन की ओर से मुङो यह दमदार भूमिका मिली है। इससे मैं बेहद उत्साहित हूं। बचपन में इच्छाधारी नाग-नागिन के प्रसंग वाली कई पौराणिक कथाएं सुनने को मिलीं और कई शो भी देखे। कलाकारों के कास्ट्यूम देखकर मन में इस तरह की भूमिकाएं करने की इच्छा भी होती थी। इस शो का हिस्सा बनकर बेहद खुश हूं, कोशिश करूंगी कि मैं अपना शत-प्रतिशत दूं। क्या आपको लगता है कि कहानी चंद्रकांता की दर्शकों में अपनी छाप छोड़ेगा? -आज के दर्शक ज्यादा डिमांडिंग हैं। वे टीवी पर दमदार शो देखना चाहते हैं। इच्छाधारी नाग-नागिन के प्रसंग जुड़ने के बाद यह शो दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। सुनील अग्निहोत्री के निर्देशन का तरीका कैसा लगा? -वह एक संवेदनशील और मीठे स्वभाव के इंसान हैं। एक निर्देशक के रूप में उनके काम में परिपक्वता नजर आती है। उनका प्रोडक्शन स्तर भी अच्छा है। हम सभी कलाकार उनका सपोर्ट सिस्टम हैं। टीवी पर आपको किस तरह के पात्र पसंद हैं? -मैं उस तरह के किरदार करना चाहूंगी, जो कहानी का अंतरंग हिस्सा हो और जिनमें भावनात्मक रंग भी हों। अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में कुछ बताएं? -फिलहाल मेरे लिए कहानी चंद्रकाता की अहम है। इस शो के लिए मेहनत से काम करना है। इसमें अपने चयन की सार्थकता साबित करना है। - जे. संजीव कोलकाता में जन्मी एवं मॉडलिंग के जरिए एक्टिंग तक का सफर तय करने वाली बंगाली बाला सोमासरी गांगुली को लोग भले नहीं पहचानते हों, लेकिन प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन की दुल्हनिया डिंपी महाजन को लोग जरूर पहचानते होंगे। इमेजिन टीवी के रियलिटी शो राहुल दुल्हनियां ले जाएगा के जरिए ही तो राहुल ने डिंपी से स्वयंवर रचा कर टेलीविजन के इतिहास में धमाका किया था। इससे पहले वह 2009 में आयोजत ग्लेडरैग्स मेगा मॉडल मैनहंट के ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भी हिस्सा ले चुकी थीं। रियलिटी शो जोर का झटका में भी उन्होंने शिरकत की थी। एक ब्रेक के बाद डिंपी निमार्ता-निर्देशक सुनील अग्निहोत्री और सहारा-वन टेलीविजन के फिक्शन शो कहानी चंद्रकांता की में इच्छाधारी नागिन ज्वाला की भूमिका अपने हिस्से में करके फिर से सुर्खियों में आ गई हैं। इस सीरियल में उनके किरदार एवं अन्य पहलुओं पर डिंपी से बातचीत के अंश : मुङो मेरी मेहनत का फल कहानी चंद्रकांता की में नागिन ज्वाला की भूमिका को पाकर मिल गया। हालांकि इच्छाधारी नागिन का किरदार एक पौराणिक कथा से प्रेरित है, लेकिन वर्तमान समय में भी इस किरदार को दर्शक पसंद करेंगे।

Sunday, July 15, 2012

लाइफबुक बना फेसबुकः अच्छे अनुभव के लिए इन दस चीजों से रहे दूर

फेसबुक परवेजऔरनॉनवेजअकाउंट का चला खास प्रचलन

वैसे तो सिटी के यूथ फेसबुक पर खुद को बिंदास एक्सप्रेस करते हैं, लेकिन जैसे ही शादी की बात चलती है एफबी अकाउंट से सारा ‘नॉनवेज’ कॉन्टेंट रिमूव कर देते हैं।कई का दूसरा अकाउंट भी होता है जो एफबी पर इनका ‘वेज’ फेस दिखाता है।

दोस्तों के साथ गपशप, शेयरिंग मोमेंट, फोटो, वीडियो, बिंदास चैटिंग और कमेंट्स करना यानी सोशल नेटवर्किग। वेज-नॉनवेज हर तरह की बातें। सोशल नेटवर्किग साइट्स परअब सबकी नजर रहती है, सभी सारी बातें जान जाते हैं, इस कारण यंगस्टर्स फेसबुक पर अपनी दो प्रोफाइल्स बना रहे हैं। एक दोस्तों के लिए ओपन और दूसरी फैमिली, खास फ्रेंड्सके लिए हिडन। एक पर वे सोशली एक्सेप्टेबल बिल्कुल अच्छी इमेज के साथ रहते हैं। फोटो, वीडियो और कमेंट्स लिखते समय अवेयर रहते हैं। दूसरी प्रोफाइल दोस्तों के लिए।

इस पर सब कुछ ओपन बिंदास। खासबात यह है कि दूसरी प्रोफाइल शादी की बातचीत के दौरान और इंगेजमेंट के बाद डिलीट या हिडन हो जाती है या फिर वेज प्रोफाइल में तब्दीलहो जाती हैं। क्योंकि लड़के या लड़की के पैरेंट्स भी इन दिनों अपने बच्चों के होनेवाले लाइफ पार्टनर के बारे में जानने के लिए फेसबुक का सहारा ले रहे हैं।

एफबी पर दो प्रोफाइल्स के जरिए प्रेजेंस का सबसे बड़ा कारण आधुनिक दिखते हुए भी समाज के लिए पारंपरिक बने रहना है। इससे सबसे ज्यादा मिडिल क्लास प्रभावित हो रहा है।सिटी की मॉडल स्मिता गर्ग कुछ ऐसे लोगों में से हैं जिन्होंने दो फेसबुक प्रोफाइल बना रखी हैं। एक पर फ्रेंड्स और उनके प्रोफेशन से जुड़े लोग हैं, जबकि दूसरे पर सिर्फ फैमिली मेंबर्सऔर उनसे संबंधित फ्रेंड्स। वे कहती हैं, ‘मैं मिडिल क्लास फैमिली से हूं। हमारी सोसायटी के लोगों को अब भी मॉडलिंग, एक्टिंग पसंद नहीं करते।

अगर मैं फैमिली वाली प्रोफाइल पर मॉडलिंग के फोटो डाल दूं तो काफी दिक्कत होगी। इस कारण मैंने दो प्रोफाइल बनाए हैं। मॉडलिंग में करियर बना रहे स्टूडेंट अशफाक ने बतायाकि उनके ज्यादातर फ्रेंड्स इसी फील्ड के हैं। वो अपने प्रोफाइल पर नॉनवेज फोटो और वीडियो शेयर करते हैं। उन्होंने कहा, पहले डर रहता था कि कोई परिचित या फैमिली मेंबर नदेख ले। इसलिए मैंने एक वेज प्रोफाइल भी बनाई। इसमें सिलेक्टेड फ्रेंड्स और फैमिली को रखा, अब कोई टेंशन नहीं है।

कैसे-कैसे

- स्वाति दीवान बताती हैं कि थोड़े समय पहले मम्मी-पापा ने मेरे लिए एक लड़का पसंद किया था। एक दो बार बात होने के बाद हम एफबी फ्रेंड बन गए। मैंनेउसकी प्रोफाइल में उसके ड्रिंक करते हुए फोटोज देखे। पूछने पर उसने कभी-कभी ड्रिंक करने की बात कबूली। मैंने पैरेंट्स से ड्रिंक करनेवाले लड़के से शादी करने से मना कर दिया।

- शीला जैन कहती हैं कि बेटा पढ़ने के लिए पुणो गया। वो घर आया तो उसने मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में बताया। मैंने भी राहुल (बेटा) की फ्रेंड लिस्ट में उसलड़की की प्रोफाइल देखकर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी। उसने रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया। मैंने देखा कि उसकी प्रोफाइल में फोटोग्राफ्स में उसने बड़े ही बेहूदा कपड़े पहने हुए हैं। मैंनेतुरंत बेटे को फोन किया और समझाया कि ऐसा नहीं चलेगा। मुझे इस तरह के कपड़े पहनने वाली बहू नहीं चाहिए।

- फेसबुक के कारण मेरे ब्वॉयफ्रेंड जो कि अब मेरे पति हैं उनसे बहुत झगड़ा हो गया था। उन्होंने मेरे फेसबुक अकाउंट पर एक कमेंट पढ़ा, स्वीटी बहुत स्वीट लग रही हो। यह मेरानिक नेम है। बस फिर क्या था, वो गुस्से से आगबबूला हो गए। मैंने कहा दोस्त है, उसने वॉल पर लिख दिया, तो इसमें मेरी क्या गलती है। उन्होंने मुझसे कहा उसे पोस्ट करों किदुबारा कभी कोई क़ॉन्टैक्ट न रखें। मुझे लगा कई दोस्त हैं, किसी ने दुबारा ऐसा लिखा तो फिर झगड़ा होगा, इससे अच्छा है कि एकाउंट से डिस्कनेक्ट ही हो जाऊं। इसके बाद मैंनेदूसरा एकाउंट बनाया जिस पर फैमिली और सलेक्टेड फ्रेंड्स हैं।

प्रीति दुबे सॉफ्टवेयर इंजीनियर (परिवर्तित नाम)

- दिव्या माहेश्वरी (परिवर्तित नाम) कहती हैं कि हमने मेट्रिमोनियल साइट्स के जरिए बेटे के लिए एक लड़की पसंद की। उसके पैरेंट्स से बात भी हुई। उन दोनों कोआपस में मिलवाने की बातचीत चल रही थी। एक दिन मेरी छोटी बेटी ने मुझसे कहा कि आप जिसे बहू बना रही हैं, शी इज एन ओकेजनल ड्रिंकर। मैंने पूछा तुम्हें किसने बताया तोउसने फेसबुक प्रोफाइल दिखाई, जिसमें उस लड़की ने अपने आप को ओकेजनल ड्रिंकर बताया था। फिर हमने बात आगे नहीं बढ़ाई।

फैमिली, सोसायटी का डर

दो-दो एफबी प्रोफाइल पर समाजशास्त्री ज्ञानेंद्र गौतम कहते हैं कि हम वेस्टर्नाइज हो रहे हैं। कपड़ों, एसेसरीज से मॉडर्न हो रहे हैं, लेकिन सोच मैच्योर नहीं हुई। हम ढोंग का चोला ओढ़ेरहते हैं। समाज में हम दो चेहरों के साथ हैं जो हमारे चरित्र का हिस्सा भी बन गया है। यंगस्टर्स और दूसरे लोग इसी तरह दो प्रोफाइल बनाकर दो तरह के चेहरों के साथ सोशलनेटवर्किग करते हैं। परिवार और समाज का डर इसका मुख्य कारण है। दोस्तों के बीच शान और सोसायटी में दिखावे के लिए हम प्रोफाइल पर सबकुछ डाल देते हैं जो अनैतिक है।


फेसबुक के लाइफबुक बनने की वजह से लोग अक्सर भूल जाते हैं कि सोशल नेटवर्किंग जैसे मंच पर क्या दिया जाना चाहिए और क्या नहीं। हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो चीजें निजी दायरे में अच्छी लगती हैं, उन्हें फेसबुक पर डालना आपको हंसी का पात्र बना सकता है। आपके लिए खतरनाक भी हो सकता है। कुछ ऐसी चीजें हैं , जिन्हें फेसबुक पर करने से बचना चाहिए। जरा गौर कीजिएः
1. खाना खाते वक्त की तस्वीरें- नाश्ता करते और खाना खाते वक्त की तस्वीरें फेसबुक के लिए नहीं हैं। अगर आपको खाना खाते वक्त की तस्वीरें एफबी पर डालने की जरूरत महसूस हो तो ध्यान रखिए कि वे चुटीली, दिलचस्प और कुछ जानकारी देनी वाली होनी चाहिए।
2. मत बदलिए रिलेशनशिप स्टेटस बार-बार- अगर आप किसी को पसंद करते हैं और उसे इंप्रेस करने के लिए रिलेशनशिप स्टेटस बार-बार बदल रहे हैं, तो यह सही नहीं है। ऐसा करने से फेसबुक पर आपको जानने वाले सैकड़ों लोगों के मन में आपकी गलत छवि बनेगी।
3. जूते-चप्पलों की तस्वीरें- दोस्तों के साथ जूते चप्पल या पैरों की तस्वीरें लेना भद्दा लगता है। कई बार हमारे जूते चप्पलों की स्थिति हमें हास्यास्पद बना देती है।
4.हैरान करने वाले मैसेज- हर आम बात को लेकर दूसरों को हैरान परेशान करने वाले मैसेज भेजना सही नहीं है। ऐसा बार बार करने से आपकी विश्वसनीयता को धक्का लगता है।
5.स्माइली से शोक न जताएं- गमी के मौके पर दुख जताने वाले स्माइली (इमोटीकॉन) का इस्तेमाल न करें। इसे संवेदनहीनता का सूचक माना जा सकता है।
6. इंटरनेट स्लैंग का ज्यादा इस्तेमाल नहीं- LOL और ASAP जैसे नेट स्लैंग का ज्यादा इस्तेमाल न करें। ऐसा करने पर आपके दोस्त आपके पोस्ट और कमेंट हटा सकते हैं।
7. ज्यादा तस्वीरें सही नहीं- फेसबुक पर जरूरत से ज्यादा फोटो पोस्ट करने से लोग आपको आत्ममुग्धता का शिकार मान सकते हैं।
8. व्यक्तिगत डायरी न बनाएं-फेसबुक पर कोई भी सीक्रेट और कन्फेशन पोस्ट करने से पहले सौ बार सोचें। हालांकि आप इन्हें बाद में डिलीट कर सकते हैं, लेकिन याद रखिए, मुंह से निकले शब्द वापस नहीं आते।
9. खुद को बढ़ा-चढ़ा कर न पेश करें-कई बार बड़े बड़े दावे फेसबुक पर आपको अपमान का सामना करने पर मजबूर कर सकते हैं। मुझे पता है कि आपमें में से ज्यादातर लोग इसे रीपोस्ट नहीं करेंगे लेकिन मेरे दोस्त मेरा साथ जरूर देंगे। इस तरह के कमेंट भारी पड़ सकते हैं।
10. शीशे के सामने खड़ी तस्वीरें पोस्ट करना-आप भले खुद को कितना भी पसंद करें, लेकिन शीशे के सामने खड़े होकर सेलफोन से खींची गई तस्वीरें फेसबुक पर डालना सही नहीं है।


Sunday, July 8, 2012

घर बैठे पायें यूपी पर्यटक स्थलों की जानकारी

लखनऊ। अब प्रदेश के पर्यटन स्थलों की जानकारी के लिए न को पर्यटन कार्यालय जाना होगा और न ही घंटों कम्प्यूटर पर वेबसाइट सर्च करनी होगी। पर्यटकों को अब बस एक फोन लगाना होगा और उन्हें समस्त जानकारी मिल सकेगी। विभाग ने एक हेल्प लाइन शुरू की है जिसके जरिए यूपी के पर्यटन स्थलों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी जायेगी।

अभी तक पर्यटकों को पर्यटन स्थलों, होटलों व अन्य जानकारी के लिए पर्यटन कार्यालय जाना पड़ता था। वहीं देश-विदेश से आये सैलानियों को यदि कोई दिक्कत होती थी या अन्य जानकारी लेनी थी तो वह मिल नहीं पाती थी। विभाग ने इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए लखनऊ से 0522-3303030 न बर पर हेल्पलाइन शुरू की है, इसके जरिए सैलानी पर्यटन से जुड़ी समस्त जानकारी ले सकते हैं।

जैसे की कौन से पर्यटन स्थल पर किस मौसम में जाना उचित होगा। होटलों की स्थिति, धार्मिक पर्यटन स्थल, ऐतिहासिक पर्यटन स्थल व पैकेज टूर आदि। वहीं कुछ समय पहले विभाग ने विंध्य व उसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों के कायाकल्प से साथ ही इसकी वेबसाइट शुरू की है। इस वेबसाइट के जरिए पर्यटक प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत नजारा, कैमूर वन्य जीव विहार व रिहंद जलाशय और यहां का विश्व प्रसिद्घ कजली संगीत पर मजा घर बैठे ले सकेंगे। यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टिï से काफी महत्वपूर्ण है।

इसको ध्यान में रखते हुए विभाग इसे विकसित करने की तैयारी कर रहा है। यहां प्रागैतिाहासिक काल के धरोहर, विडंमफाल, लखनियादरी, सिद्घ की दरी, टांडा फाल, कुशियरा फाल, मुक्खाफाल जैसे प्राकृतिक कई स्थल हैं। वहीं रहस्यमयी व रोमांच का भी संगम यहां देखने को मिलता है। यही वह जगह है जहां चंद्रकांता का चुनारगढ़ का किला व शिलालेश स्त भ भी मौजूद है। धर्मिक दृष्टिï से अधिष्ठïात्री देवी मां विंध्वासिनी देवी भी यही विराजमान है।

पर्यटन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक लाखों की सं या में धार्मिक पर्यटन मां विंध्वासिनी के दर्शन करने यहां आते हैं। इन क्षेत्रों के बारे में अधिक जानकारी न हो पाने के कारण वह यहां के रमणीय स्थलों की सैर नहीं कर पाते हैं। अब इस वेबसाइट के बनने के बाद लोगों को पहले से ही इन स्थलों के बारे में जानकारी हो जायेगी। वेबसाइट में मिर्जापुर व सोनभ्रद के सभी ऐतिहासिक, प्राकृतिक व धार्मिक स्थलों के अलावा यहां के लोक संगीत को भी शामिल किया गया है।

Saturday, July 7, 2012

जश्न में डूबे भाजपाई



लखनऊ। महापौर के पद पर भाजपा उम्मीदवार डा.दिनेश शर्मा की जीत से भाजपा कार्यकर्ता जश्न में डूब गए। कार्यकर्ताओं ने जमकर मिठाई बांटने के साथ के साथ आतिशबाजी की। डा.शर्मा ने जीत के बाद हजरतगंज स्थित हनुमान मंदिर में शीश झुकाकर आशीर्वाद लिया। उन्होंने ऐशबाग स्थित घर जाकर मां का भी आशीर्वाद लिया। विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से मायूस कार्यकर्ताओं में शनिवार को महापौर पद के चुनाव परिणाम ने उत्साहभर दिया। शाम होते ही जैसे भाजपा उम्मीदवार डा.दिनेश शर्मा ने निर्णायक बढ़त ली तो भाजपा के खेमे में खुशी की लहर दौड़ गयी। भाजपा के नगर महामंत्री राजीव मिश्र मिष्ठान वितरण की तैयारी में जुट

गये। भाजपा के उत्साही कार्यकर्ताओं ने परिणाम की घोषणा होते ही डा.शर्मा को फूल-मालाओं से लाद दिया। कार्यकर्ताओं ने चौक चौराहे की भव्य सजावट करायी। श्री पब्लिक बाल राम लीला समिति के गोविंद शर्मा, अनुराग मिश्र, ओम दीक्षित, डा.राम कुमार वर्मा ने चौक चौराहे पर लड्डू व मिष्ठान वितरण कराया। इस दौरान जमकर आतिशबाजी भी हुई। भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर भी जश्न का माहौल रहा और खूब मिठाई बंटी। ऐशबाग इलाके में भी देर रात तक मिठाई बंटी। डा.शर्मा के पैतृक आवास पर भी जश्न का माहौल रहा और देर रात तक बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। काफी देर तक उत्साही कार्यकर्ता आतिशबाजी करते रहे। आतिशबाजी व मिठाई बांटकर मनायी जीत की खुशी|


Wednesday, July 4, 2012

क्या अखिलेश हैं उत्तरप्रदेश के सबसे कमजोर मुख्यमंत्री?

धीरेन्द्र अस्थाना

अखिलेश ने फैसला किया था कि विधायक निधि के पैसे से राज्य के विधायक 20 लाख रुपये तक की गाड़ी खरीद सकेंगे. इस फैसले के बाद विधायक निधि के करीब सौ करोड़ रुपये गाड़ियों के खरीदने पर ही खर्च हो जाते, लेकिन विवाद इतना बढ़ा की अखिलेश को अपना फैसला वापस लेना पड़ा.

विधायक निधि में हर विधायक को करीब डेढ़ करोड़ रुपये मिलते हैं और ये रकम क्षेत्र में विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए दी जाती है.बसपा ने इस पर कटाक्ष भी किया है, कि जिस तरह तुगलक ने 1327 ई. में अपनी मुर्खता के चलते देश की राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद कर दिया और कुछ समय बाद पुनः दिल्ली को राजधानी बना दिया, ठीक उसी तरह अखिलेश भी अपने फैसलों से कुछ ऐसा ही व्यक्त कर रहे हैं|

अभी पिछले महीने की बात है अखिलेश यादव ने यूपी में बिजली की समस्या से राहत दिलाने के लिए शाम सात बजे से मॉल और बड़ी दुकानों को बंद करने का फैसला किया था, लेकिन चौतरफा विरोध के बाद चौबीस घंटे भी नहीं लगे और उसे वापस ले लिया.

ऐसे में सवाल यही है कि क्या क्या कमजोर मुख्यमंत्री हैं अखिलेश सिंह यादव ? फैसला लेकर वापस लेने की नौबत क्यों आ रही है ?
सरकार चलाते हुए सौ दिन से ज्यादा बीतने के बाद विरोधी अखिलेश को कमजोर मुख्यमंत्री तक कह रहे हैं लेकिन अखिलेश चाहते हैं कि उनके विवादित फैसलों पर कोई बहस न हो.
प्रदेश की जनता ने एक युवा को मुख्यमंत्री पद पर बेहद उम्मीदों के साथ बिठाया था, ऐसे में अगर बार-बार उनके पैसलों की वजह से उन पर उँगलियाँ उठ रही हैं तो सवाल उठाना लाजमी है| जिनमें से मुख्य सवाल हैं-
(1) ऐसे कौन से चापलूस अफसर हैं जो मुख्यमंत्री को इस तरह के फैसले लेने का सुझाव देते हैं?
(2) यदि पार्टी की किरकिरी कराने पर आमादा चापलूस अफसर मुख्यमंत्री को बेतुके फैसले लेने के सुझाव देते हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखा दिया जाता?
(3) क्या मुख्यमंत्री अपने विवेक से फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं?
(4) मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया कोई भी फैसला 24 घंटे में क्यों बदल दिया जाता है?

Monday, July 2, 2012

डॉक्टरों व छात्रों ने माँगा हक़ मिली लाठियां


लखनऊ| अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे डॉक्टरों व छात्रों की पुलिस से हुई झड़प के बाद जमकर लाठीचार्ज व पथराव हुआ। लविवि के न्यू कैंपस व विधान भवन के समक्ष स्थित धरना स्थल पर हुए इन हंगामों के बाद पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए। वहीं विधान भवन के समक्ष डॉक्टरों ने जिस तरह महिला सिपाही शिवकुमारी को पीटा व उनसे अभद्रता की उसने डॉक्टरों की प्रतिष्ठा को धूमिल भी कर दिया। विधान भवन के सामने घंटों जाम लगा रहा। बाद में आरएएफ के पहुंचने पर हालात काबू में आ सके।
आयुर्वेदिक व यूनानी डॉक्टरों ने दो दिन पूर्व एलोपैथिक दवाएं लिखने का अधिकार दिए जाने की मांग को लेकर धरना दिया था। अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत सोमवार सुबह करीब तीन हजार डॉक्टर धरना स्थल पर इकट्ठा हो गए थे। दोपहर करीब डेढ़ बजे नमाज अदा करने के बाद सैकड़ों डॉक्टर अपनी मांग को लेकर सड़क पर आ गए। विधान भवन के समक्ष पहुंचकर कुछ डॉक्टरों ने हंगामा शुरू कर दिया व एक पुलिसकर्मी से मारपीट कर दी। इस पर वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने लाठीचार्ज कर डॉक्टरों को खदेड़ा। इस बीच कुछ डॉक्टरों ने विधान भवन गेट नंबर एक के पास तैनात महिला सिपाही शिवकुमार से मारपीट व अभद्रता की। इसके बाद घंटों हंगामा चलता रहा। डॉक्टरों ने एसएसआइ हजरतगंज दिनेश सिंह व दारोगा विपिन सिंह के साथ मारपीट कर उन्हें भी घायल कर दिया, जबकि 12 से अधिक डॉक्टर भी गंभीर रूप से चोटिल हुए। इनमें छह डॉक्टरों को सिविल अस्पताल ले जाया गया। इनमें से दो बिना सूचना दिए (लामा) कहीं चले गए। इधर, डॉक्टरों ने सड़क पर करीब 5:30 बजे नमाज पढ़ी। बाद में आरएएफ के पहुंचने पर डॉक्टरों को धरना स्थल के भीतर किया गया। एडीएम पूर्वी आरपी सिंह के मुताबिक डॉक्टरों ने शपथ पत्र देकर शांतिपूर्ण ढंग से धरना देने की बात कही थी, लेकिन डॉक्टरों ने धरना स्थल के गेट को धक्का देकर उसकी चेन तोड़ दी व सड़क पर आ गए। विधान भवन की दीवार से भीतर फांदने का प्रयास करने लगे। रोकने पर डॉक्टरों ने पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट शुरू कर दी। जाम लगाकर राहगीरों से भी अभद्रता की। दूसरी ओर सीतापुर रोड स्थित लविवि के न्यू कैंपस में सोमवार को एलएलबी व बीसीए की काउंसिलिंग हो रही थी। तभी करीब 11 बजे कुछ छात्र नेताओं ने पहचान पत्र व जीरो फीस के मुद्दे को लेकर काउंसिलिंग भवन गेट के पास नारेबाजी की व कुर्सियां तोड़ीं। पुलिस के पहुंचने पर हंगामा कर रहे छात्र भाग निकले, लेकिन करीब एक घंटे बाद करीब 70 छात्र वहां फिर पहुंचे और नारेबाजी करने लगे। इस पर प्राक्टोरियल बोर्ड के सदस्य उनसे वार्ता करने पहुंचे, लेकिन छात्रों ने अभद्रता शुरू कर दी। एक पुलिसकर्मी के हस्तक्षेप करने पर छात्र उससे भिड़ गए। स्थिति बिगड़ती देख प्राक्टर ने छात्रों के हटाने के निर्देश दिए। इस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। छात्रों ने बचाव में पथराव किया। इसमें छह छात्र, एक पुलिसकर्मी व गार्ड घायल हो गया। वहीं भगदड़ मचने से काउंसिलिंग में आए कई अभिभावक भी घायल हो गए। घायलों को बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया। यहां भी छात्रों ने नारेबाजी की। जानकीपुरम पुलिस ने प्राक्टर की ओर से छात्र नेता अजीत यादव उर्फ सोनू, राहुल कुमार, विक्रेश प्रसाद, राहुल सिंह, वसीम अहमद, पिंटू, सूर्य प्रताप, उपेंद्र सिंह व अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है।
धीरेन्द्र अस्थाना की लाइव रिपोर्ट