Thursday, March 6, 2014

माल में खरीदारी की समझदारी का रखे ध्यान

धीरेन्द्र अस्थाना 
चमचमाती  भव्य  बहुमंजिली  इमारतों  की  सजी-धजी  दुकानों  में  खरीदारी  का एक  अलग  अंदाज  और  आनंद  होता  है।  यहां  गृहणियों  के  लिए  जितना  सुरक्षित  और  एक  ही  छत  के  नीचे  सहजता  से  मनपसंद  चीजें  खरीदने  का माहौल  होता  है,  वहीं  चीजें  उचित  कीमत  पर  मिल  जाती  हैं  और  खुदरा  दुकानदारों  से  चिक-चिक  भी  नहीं  करनी  होती  है।  भारत  में  खुदरा  बाजार  में  विदेशी  निवेश  को  अनुमति  दिये  जाने  को  लेकर  सड़क  से  लेकर  संसद  तक  में  हंगामा  मचा,  लेकिन  बिग  बाजार,  रिलायंस  फ्रेश,  स्पैंषर्स, क्यू  व  अन्य  कंपनियां  देश  में  बड़े  पैमाने  पर  रिटेल  का  कारोबार  कर  रही  हैं  और  उनके  आउटलेट्स  महानगरों-शहरों  के  कोने-कोने  में  फैल  रहे  हैं।  इनमें  सभी  तरह  के  रोजमर्रे  की  उपयोग  से  लेकर  समय-समय  पर  काम  आने  वाले  विभिन्न  सामान  उचित  कीमत  और  गुणवत्ता  के  साथ उपलब्ध  होते  हैं।  यह  कहें  कि  मॉल  में  शॉपिंग  करते  हुए  एंजाय  किया  जा  सकता  है।  एक  चीज़  की  कई  वैरायटी  में  से  अपनी  पसंद  और  जरूरत  के  मुताबिक  चुनना  आसान  हो  गया है।  फिर  भी  इन  रिटेल  दुकानों  में  कुछ  भी  आंख  मूंदकर  खरीदना  ठीक  नहीं हो  सकता  है।  अच्छे  खरीदार  की  समझदारी  यही  है  कि  वह  तमाम  चीजों  की  अच्छी  तरह  से  जांच-पड़ताल  कर  ही  खरीदे।  उन्हें  पता  होना  चाहिए  कि  इनमें  खरीदारी  करने  पर  उनकी  जेब  में  डाके  भी  डाले  जा  सकते  हैं  या  फिर  खराब  सामन  भी  खरीद  लिये  जा  सकते  हैं।  आइए  एक  नजर  उन  बातों  पर  डालते  हैं,  जिससे  रिटेल  चेनों  से  कुछ  भी  खरीदारी करने  पर  चूना  नहीं  लगने  पाए।
क्या करें-
1. सही  समयः  आमतौर  पर  लोग  यह  माना  जाता  है  कि  मॉल  में  शॉपिंग करना  आसान  होता  है,  लेकिन  ऐसा  अक्सर  हो  नहीं  पाता  है।  मॉल  के बारे  में  अगर  पहले  से  जानकारी  नहीं  हो  तब  तो  और  भी  मुश्किल  आ  सकती  है।  इसके  लिए  सही  समय  का  चुनाव  भी  करना  आवश्यक  होता है।  जैसे  कि  अगर  आप  सुकून  से  शॉपिंग  का  लुत्फ  उठाना  चाहते  हैं, तो  मॉल  खुलने  के  एक  घंटे  बाद,  यानी  सुबह  के  समय  शॉपिंग  करने  जाएं।  सुबह  भीड़  कम  होने  से  आप  तसल्ली  से  एक-एक  चीज  की  जानकारी ले  सकते  हैं  और  मन  मुताबिक  शॉपिंग  कर  सकते  हैं।  इस  समय  शॉप  के  सहयोगी  लड़के-लड़कियां  भी  आपकी  मदद  आराम  से  कर  पाएंगे।
2. गुरुवार   शुक्रवार  अच्छाः  शॉपिंग  के  लिए  गुरुवार  व  शुक्रवार  सबसे  सही  दिन  होते  हैं।  इन  दिनों  स्टोर्स  वीक एंड  सेल  रखते  हैं,  लेकिन  छुट्टी  न होने  की  वजह  से  भीड़  कम  ही  जुट  पाती  है।  ज़ाहिर  है,  इसका  फायदा  उठाकर  उन  सामानों  को  इन  दो  दिनों  में  कम  पैसों  में  खरीदारी  की जा  सकती  है।
3. खाली  हाथः  मॉल  में  घुसने  से  पहले  आपका  हाथ  जितना  खाली  होगा उतना  ही  अच्छा  रहेगा।  एक्स्ट्रा  सामान,  मसलन  कोई  बैग,  फाइल,  शॉल,  मफलर  वगैरह  हाथ  में  नहीं  रहे।  इन  सामानों  को  गाड़ी  में  छोड़ दें  या  फिर  मॉल  के  कांउटर  के  साथ  लगे  या  गेट  के  बाहर  लगे  क्लॉक  रूम  में  जमा  करवा  सकते  हैं।  हाथ  में  कईं  तरह  का  सामान  रखने  से  चीज़ों की  परख  करते  समय  उन्हें  संभालना  मुश्किल  होगा,  जिससे  अच्छी  तरह  शॉपिंग नहीं  हो पाएगी।  ज़्यादा  सामान  हाथ  में  रहने  से  मोबाइल  जैसी  चीज़ों  के  काउंटर  पर  छूटने  की आशंका  भी  बनी  रहती  है।
4. महिलाओं की  शॉपिंग :  अपने  लिए  ड्रैस  वगैरह  की  शॉपिंग  करने  वाली महिलाओं  को  चाहिए  कि  वे  ज़्यादा  कसा  हुआ  कपड़े  नहीं  पहनें।  उन्हें  बटन  वाली  लूज  शर्ट  पहननी  चाहिए।  इससे  उन्हें  नई  ड्रेस  का  ट्रायल लेते  समय  ड्रेस  उतारने  में  ज्यादा  दिक्कत  नहीं  आएगी।  वरना  चेंज करते  समय  टाइट  फिटिंग  टॉप  या  कुर्ता  उनकी  लिपस्टिक  के  साथ-साथ दूसरे  मेकअप  को  भी  पोंछ  देगा।  ऐसे  कपड़ों  में  उनके  लिए  अपनी  हेयर  स्टाइल  को  मेंटेन  रखना  भी  बेहद  मुश्किल  होगा।  ऐसे  में  बेहतर होगा  कि  शॉपिंग  के  लिए  निकलते  समय  अपने  पर्स  में  टचअप  किट  रखें।  इसमें  कंसीलर,  लिपस्टिक,  लिप  बाम,  छोटी  कंघी  और  ब्लॉटिंग  पेपर  होना  ज़रूरी  है।  ड्रेस  ट्राई  करते  समय  अगर  आपका  मेकअप  बिगड़  जाए,  तो  आप  अपना  मेकअप  आसानी  से  संवार  सकती  हैं।  हां, एक  और  बात  का  ध्यान  रखें।  कंफर्टेबल  शूज  पहनें।  इससे  आपको  घूमने  में  दिक्कत  नहीं  आएगी।  साथ  ही,  ड्रेस  ट्रायल  करने  के  दौरान उतारने  व  पहनने  में  भी  आसानी  रहेगी।
5. कूपनः  अगर  आपके  पास  स्टोर्स  के  कूपन  हैं,  तो  इनको  एक  अलग  जेब  में  रख  लें।  इससे  आपको  उनको  बार-बार  ढूंढने  में  दिक्कत  नहीं उठानी  पड़ेगी।  अलग-अलग  जगह  रखने  से  हो  सकता  है  कि  सही  समय  पर  आप  उनका  इस्तेमाल  न  कर  पाएं।  इसके  साथ  ही  अपने  पर्स  में  खरीदारी  की  लिस्ट  एक  जगह  पर  रखें,  ताकि  उसे  बार-बार  ढूंढना  नहीं  पड़े।  आमतौर  पर  लिस्ट  खो  जाती  है,  जिससे  कई  सामान   शॉपिंग  के  दौरान  भूलने  की  आशंका  बनी  रहती  है।
6. फ्री  फूड  सैंपलः  अगर  आप  सुबह  के  समय  शॉपिंग  करने  गए  हैं  और आपका  मन  कुछ  खाने  का  कर  रहा  है,  तो  मॉल  के  फूड  कोर्ट  सेक्शन में  जाएं।  दरअसल,  इस  समय  यहां  आपको  फ्री  फूड  सैंपल  तो  मिलेंगे ही,  साथ  ही  भीड़  न  होने  से  अपने  मनपसंद  खाने  का  ऑर्डर  आसानी से  कर  पाएंगे।
7. होल्ड  सुविधाः  कई  स्टोर्स  चीज़ों  को  होल्ड  करने  की  सुविधा  भी  देते  हैं।  इसका  पता  करने  के  बाद  इसका  लाभ  उठाया  जा  सकता  है।  आमतौर  पर  होता  यह  है  कि  हमें  कोई  चीज़  पसंद  आ  जाती  है,  लेकिन  अन्य  जगह  उसका  क्या  दाम  चल  रहा  है,  हमें  पता  नहीं  होता।  इस  मकसद  से  यह  सुविधा  काम  आ  सकती  है,  अपने  पसंद  की  चीज़ों  को  बाद  में तय  समय  के  अनुसार  खरीदा  जा  सकता  है।  अगर  आपको  कोई  चीज़  पसंद  आ  जाती  है  और  किसी  कारणवश  इसे  उस  समय  नहीं  खरीद  पा रहे  हैं  तो  यह  सुविधा  आपके  लिए  बेहतरीन  रहेगी।

Saturday, June 29, 2013

बारिश बनी काल, कई नदियां उफान पर

लखनऊ| उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में पिछले कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश की वजह से घाघरा, सरयू और शारदा उफान पर हैं, जिससे आसपास के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। नदियों का रौद्र रूप देखकर अब लोग सुरक्षित आशियाने की तलाश में पलायन कर रहे हैं। उप्र के फैजाबाद जिले में सरयू नदी खतरे के निशान को पार कर गई है, जिससे बाढ़ का पानी शहर के दर्जनों कॉलोनियों में प्रवेश कर गया है। जगह-जगह मकान एवं दीवार गिरने से पिछले 24 घंटों के दौरान पांच लोग अपनी जान गवां चुके हैं।

गोंडा में पिछले 24 घंटों से हो रही मूसलाधार बारिश की वजह से जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गय है। जिले में 175 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई, जो अब तक रिकॉर्ड है। बहराइच में घाघरा उफान पर है। एल्गिन ब्रिज पर नदी खतरे के निशान से आठ सेंटीमीटर ऊपर बह रही है। आस-पास के तीन गावों के करीब दो दर्जन मकान पानी में समाहित हो चुके हैं। 

गोंडा और बहराइच के अलावा अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, अयोध्या, बलरामपुर और श्रवास्ती जिलों में कमोबेश यही हाल है। लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं। बाढ़ की विभीषिका को देखते हुए प्रशासन की ओर से बाढ़ चौकियां स्थापित की गई हैं और कई जगहों पर सेना ने राहत एवं बचाव कार्य की कमान खुद अपने हाथों में ले ली है। पूर्वाचल में बलिया, गाजीपुर, बनारस व गोरखपुर में विभिन्न नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिस वजह से प्रशासन ने अलर्ट जारी कर दिया है।

Monday, January 14, 2013

प्रयाग की ठण्ड में जब .........


नागा साधूप्रयाग की ठण्ड में जब पारा शून्य पर पहुँच गया हो इन नागा साधुओं की देख कर मन आश्चर्य से भर उठता है। कैसे जब हम इतने सारे स्वेटर , टोपी , शॉल ले कर भी ठिठुर रहे है और ये सिर्फ भस्म लगा कर मस्त है। सच है फ़क़ीर ही दुनिया का सबसे अमीर इंसान है।ये आकाश को ही अपना वस्त्र और भूमि को अपना आसन मानते है।
नागा साधू सिर्फ कुम्भ मेले के दौरान आसानी से देखे जा सकते है अन्यथा ये हिमालय में कठिन स्थानों पर कड़े अनुशासन में रहते है।इनके क्रोध के कारण मीडिया और आम जनता इनसे दूर रहती है।पर सच्चाई यह है की ये तभी क्रोध में आते है जब कोई इनसे बुरा व्यवहार करे। अन्यथा ये अपनी ही मस्ती में रहते है।
जब जब कुम्भ मेले पड़तें हैं तब तब नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवन शैली देखने को मिलती है । पूरे शरीर मे भभूत मले , निर्वस्त्र तथा बड़ी बड़ी जटाओं वाले नागा साधू कुम्भ स्नान का प्रमुख आकर्षण होते हैं । कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार इन्हे ही मिलता है , पहले वर्षो कड़ी तपस्या और वैरागी जीवन जीते हैं इसके बाद नागा जीवन की विलझण परंपरा से दीक्षित होते है । ये लोग अपने ही हांथों अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करते हैं , जब की श्राद्ध आदि का कार्य मरणोंपरांत होता है , अपना श्राद्ध और पिंड दान करने के बाद ही साधू बनते हैऔर सन्यासी जीवन की उच्चतम पराकाष्ठा तथा अत्यंत विकट परंपरा मे शामिल होने का गौरव प्राप्त होता है ।
भगवान शिव से जुड़ी मान्यताओं मे जिस तरह से उनके गणो का वर्णन है ठीक उन्ही की तरह दिखने वाले, हाथो मे चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देख कर आम आदमी एक बारगी हैरत और विस्मयकारी की मिलीजुली भावना से भर उठता है ।ज़रूरी नहीं कि सारे साधू चिलम ही पिएँ, बहुत से कुछ अलग करतब करते भी नज़र आ जाते है।ये अपने बाल तभी काटते है जब इन्हें कोई सिद्धि प्राप्त हो जाती है अन्यथा ये भगवान् शिव की भांति जटाएं रखते है। ये लोग उग्र स्वभाओ के होते हैं, साधु संतो के बीच इनका एक प्रकार का आतंक होता है , नागा लोग हटी , गुस्सैल , अपने मे मगन और अड़ियल से नजर आते हैं , लेकिन सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्राद्ध , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,
अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है। वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं । पारे का प्रयोग कर इनकी कामेन्द्रियाँ भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।
शंकराचार्य ने विधर्मियों के बढ़ते प्रचार को रोकने के लिए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए सन्यासी संघो का गठन किया था । कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े मे सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता था । औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था , आज संतो के तेरह अखाड़ों मे सात सन्यासी अखाड़े (शैव) अपने अपने नागा साधू बनाते हैं :- ये हैं जूना , महानिर्वणी , निरंजनी , अटल ,अग्नि , आनंद और आवाहन आखाडा ।

जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे ।
धर्म की रक्षा के जिस उद्देश्य से नागा परंपरा की स्थापना की गयी थी शायद अब वो समय आ गया है। नागा के धर्म मे दीक्षित होने के बाद कठोरता से अनुसासन और वैराग्य का पालन करना होता है , यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कारवाही की जाती है और दुबारा ग्रहस्थ आश्रम मे भेज दिया जाता है ।
नागा साधू सिर्फ कुम्भ मेले के दौरान आसानी से देखे जा सकते है अन्यथा ये हिमालय में कठिन स्थानों पर कड़े अनुशासन में रहते है।इनके क्रोध के कारण मीडिया और आम जनता इनसे दूर रहती है।पर सच्चाई यह है की ये तभी क्रोध में आते है जब कोई इनसे बुरा व्यवहार करे। अन्यथा ये अपनी ही मस्ती में रहते है।जब जब कुम्भ मेले पड़तें हैं तब तब नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवन शैली देखने को मिलती है । पूरे शरीर मे भभूत मले , निर्वस्त्र तथा बड़ी बड़ी जटाओं वाले नागा साधू कुम्भ स्नान का प्रमुख आकर्षण होते हैं । कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार इन्हे ही मिलता है , पहले वर्षो कड़ी तपस्या और वैरागी जीवन जीते हैं इसके बाद नागा जीवन की विलझण परंपरा से दीक्षित होते है । ये लोग अपने ही हांथों अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करते हैं , जब की श्राद्ध आदि का कार्य मरणोंपरांत होता है , अपना श्राद्ध और पिंड दान करने के बाद ही साधू बनते हैऔर सन्यासी जीवन की उच्चतम पराकाष्ठा तथा अत्यंत विकट परंपरा मे शामिल होने का गौरव प्राप्त होता है ।भगवान शिव से जुड़ी मान्यताओं मे जिस तरह से उनके गणो का वर्णन है ठीक उन्ही की तरह दिखने वाले, हाथो मे चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देख कर आम आदमी एक बारगी हैरत और विस्मयकारी की मिलीजुली भावना से भर उठता है ।ज़रूरी नहीं कि सारे साधू चिलम ही पिएँ, बहुत से कुछ अलग करतब करते भी नज़र आ जाते है।ये अपने बाल तभी काटते है जब इन्हें कोई सिद्धि प्राप्त हो जाती है अन्यथा ये भगवान् शिव की भांति जटाएं रखते है। ये लोग उग्र स्वभाओ के होते हैं, साधु संतो के बीच इनका एक प्रकार का आतंक होता है , नागा लोग हटी , गुस्सैल , अपने मे मगन और अड़ियल से नजर आते हैं , लेकिन सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्राद्ध , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है। वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं । पारे का प्रयोग कर इनकी कामेन्द्रियाँ भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।शंकराचार्य ने विधर्मियों के बढ़ते प्रचार को रोकने के लिए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए सन्यासी संघो का गठन किया था । कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े मे सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता था । औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था , आज संतो के तेरह अखाड़ों मे सात सन्यासी अखाड़े (शैव) अपने अपने नागा साधू बनाते हैं :- ये हैं जूना , महानिर्वणी , निरंजनी , अटल ,अग्नि , आनंद और आवाहन आखाडा ।
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे ।धर्म की रक्षा के जिस उद्देश्य से नागा परंपरा की स्थापना की गयी थी शायद अब वो समय आ गया है। नागा के धर्म मे दीक्षित होने के बाद कठोरता से अनुसासन और वैराग्य का पालन करना होता है , यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कारवाही की जाती है और दुबारा ग्रहस्थ आश्रम मे भेज दिया जाता है ।

Tuesday, December 18, 2012

नासा ने ध्वस्त किए चंद्रमा पर भेजे गए उपग्रह


चांद पर नज़र रखने के लिए अंतरिक्ष में भेजे गए नासा के दो उपग्रहों को जानबूझ कर चांद की सतह पर ध्वस्त कर दिया गया है.

'ऐब्ब' और 'फ्लो' नाम के ये अंतरिक्ष यान करीब एक साल तक चांद की परिक्रमा करते हुए उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को मापने का काम करते रहे हैं. ऐसा उसके आंतरिक हिस्सों के बारे में पता लगाने के लिए किया गया था.
वॉशिंग मशीन के आकार के इन दोनों उपग्रहों ने चांद की शानदार और विस्तृत तस्वीरें खींच कर भेजीं थीं. लेकिन बाद में इसका ईंधन कम हो जाने पर नासा के वैज्ञानिकों ने इन अंतरिक्ष यान को चांद के उत्तरी ध्रुव के पास के एक चट्टान पर ध्वस्त कर दिया.
जिस जगह पर इस यान को ध्वस्त किया गया है उसे अंतरिक्ष में जाने वाली पहली अमरीकी महिला सैली राइड के नाम पर रखा गया है, जिनकी इस साल की शुरुआत में मौत हो गई थी. सैली राइड की संस्था ही इन अंतरिक्ष यानों के कैमरे को संचालित कर रही थी.

टक्कर

नासा द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद अब इस उपग्रह के अनियंत्रित होकर अपोलो लैंडिंग साइट जैसी ऐतिहासिक महत्व वाली जगहों पर गिरने का अंदेशा खत्म हो जाता है.
इस उपग्रह का नासा के रेडियो ट्रैकिंग सिस्टम से ग्रीनिच मानक समयानुसार (जीएमटी) रात 10.30 बजे के आसपास संपर्क टूट गया था. चांद की सतह पर होने वाले गुरुत्वाकर्षण के विभिन्न रुपों के नक्शे ग्रह विज्ञान के क्षेत्र में कई बदलाव ला सकते हैं.
अमरीका स्थिर मैसाच्वेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की मुख्य जांचकर्ता प्रोफेसर मारिया ज़ुबेर के अनुसार, ''इन यानों ने चांद पर पड़े कई पर्दे को हटाया है. ये आनेवाले समय में चांद की उत्पत्ति से जुड़ी कई जानकारियों का स्रोत साबित होगा.''
ग्रेल के नाम से जाने जाने वाले दोनों उपग्रह एक दूसरे से करीब तीन किलोमीटर की दूरी और 30 सेकेंड के अंतराल पर चट्टान से टकराए थे. जिस समय ये दोनों उपग्रह ध्वस्थ हुए थे उस समय उस चट्टान के आसपास घुप्प अंधेरा था.
ईंधन खत्म होने के कारण पृथ्वी पर कंट्रोल रुम में बैठे वैज्ञानिकों के लिए उनको देख पाना थोड़ा असंभव था. इन्हीं दोनों उपग्रहों के तर्ज पर चंद्रमा पर भेजे गए नासा के एक और टोही विमान को भी जल्द ही क्रैश करने की योजना है.

योगदान

ग्रेल मिशन ने अब तक की सभी अंतरिक्ष परियोजनाओं की तुलना में किसी भी ग्रह के सबसे बेहतर क्वालिटी के मानचित्र भेजे हैं जिसमें पृथ्वी भी शामिल है. उपग्रहों द्वारा गुरुत्वाकर्षण में जिस फर्क को मापा गया है वो चंद्रमा के असामान्य संरचना के बारे में बताती है.
इसके स्पष्ट उदाहरण चांद की सतह पर मौजूद बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं और गहरी घाटियां हैं. इतना ही नहीं चांद के भीतरी हिस्से में मौजूद चट्टानों में भी अनियमितता पाई गई है.
हालांकि इन जानकारियों का विशलेषण अभी नहीं किया गया है लेकिन वैज्ञानिकों को चांद के संबंध में कुछ बेहद ही रोचक और नई जानकारियां मिली हैं.
प्रोफेसर मारिया ज़ुबेर के अनुसार, ''जो सबसे महत्वपूर्ण बात हमें पता चली है वो ये हैं कि चांद की बाहरी परत जितना हमने सोचा था उससे कहीं ज्य़ादा पतली है और यहां मौजूद घाटियों के कारण इसका बाहरी आवरण हट गया है. ये सभी तथ्य चांद के साथ पृथ्वी की संरचना को समझने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं क्योंकि हम ऐसा मानते हैं कि पृथ्वी और चांद की संरचना कई मायनों में एक जैसी है.''
गुरुत्वाकर्षण की इन जानकारियों से ये भी पता चलता है कि चांद को अपनी उत्पत्ति के शुरुआती वर्षों में कई तरह की दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा है जिस कारण उसकी ऊपरी परत बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है. ऐब्ब और फ्लो को चांद पर कई गहरी दरारों के सबूत भी मिले हैं, जो वहां मलबों के नीचे पड़े मिले हैं.
कुछ सौ किमी लंबे ये बांध चांद की सतह से काफी गहरे तक जाते हैं जो चांद के प्रारंभिक विस्तार के बारे में बताता है. ग्रेल द्वारा जमा किए जानकारियों से चांद की उत्पत्ति की पूरी जानकारी मिलने में मदद मिल सकती है.
कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि हो सकता है कि पृथ्वी पर दो चंद्रमा भी रहे हों जो बाद में मिलकर एक हो गए. हालांकि ग्रेल द्वारा इकट्ठा की गई जानकारियों इसे झुठला सकती हैं.

Friday, August 10, 2012

बार-बार लौटकर आने वाली खुशी है ईद


यूं तो रमजान का पूरा महीना रहमत, मगफिरत और नर्क से छुटकारे का है, लेकिन जो लोग शराबी हैं, माता-पिता का कहना नहीं मानते हैं, आपस में लड़ते हैं और दिल में कीना रखते हैं, उनकी इस महीने में भी मगफिरत व बख्शिस नहीं होती है। हर्ष के मैदान में रोजेदारों को पुकार कर कहा जाता है कि उठो और जन्नत के आठ दरवाजों में से एक खास दरवाजे [रैय्यान] से जन्नत में दाखिल हो जाओ। यह वह दरवाजा है जिसमें मगफिरत व बख्शिस नहीं दिए जाने वाले प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
रमजान वो महीना है जिसमें इंसानों की सारी मनुष्यता के लिए हिदायत बनाकर रौशनी हासिल करने के लिए कुरान नाजील फरमाया गया है। कुरान वो किताब है जिसके द्वारा इंसान सच और झूठ में, न्याय और अन्याय में, हक व बातिल में, कुर्फ में इमान में, इंसानियत और शैतानियत में फर्क करना सीखते हैं। रमजान के अंदर अल्लाह की तरफ से तमाम मुसलमानों के ऊपर रोजा फर्ज किया गया है। कुराण कहता है-ऐ इमान वालों, तुम पर जिस तरह रोजा फर्ज किया गया है ठीक उसी तरह उन्मतों पर भी रोजा फरमाया गया है ताकि तुम परहेजगार बन सको। रमजान का सबसे अहम अमल रोजा है। सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्त होने तक अपने बनाने वाले अल्लाह की एक इच्छा के अनुसार जायज खाने-पीने से और दिल की ख्वाइश से बच-बचाकर इंसान यह अभ्यास करता है कि वे पूरी जिंदगी में अपने अल्लाह के कहने के मुताबिक ही चले।
रमजान में रोजे के साथ-साथ रात में मुसलमान रोजाना तराबीह की बीस रकत नमाज में पूरा कुरान सुनते हैं। ये दुनिया भर की हर मज्जिद में अमल सुन्नत जानकर अदा की जाती है। इसकी फजीलत हदीस में आई है कि जो ईमान व ऐहतसाब के साथ ये नमाज तरबीह की अदा करेगा उसके पिछले तमाम गुनाहों को माफ कर दिया जाता है।
आमतौर पर आम मुसलमान ईद की पूर्व रात को चांद की रात के नाम से जानते हैं लेकिन कुरान में इस रात की बड़ी अहमियत होती है। हदीस के अनुसार इसका अर्थ है कि फरिश्ते आसमान पर इस रात को बातें करते हैं कि लैलतुल जाइजा [इनाम की रात] यानी पूरे रमजान जो अल्लाह के बंदों ने दिनों में रोजा रखकर और रातों में तराबीह पढ़कर अपने अल्लाह का हुकूम पूरा किया है, आज की रात उन्हें इनाम और बदले में अल्लाहताला उनकी बख्शिस व मगफिरत फरमाता है।
ईद अरबी शब्द है जिसका अर्थ है कि बार-बार लौटकर आने वाली खुशी। ईद में दो रकत नमाज वाजिब शुक्राने के तौर पर तमाम मुसलमान अदा करते हैं। वैसे मुसलमान से अल्लाहताला खुश हो जाते हैं और रमजान के दौरान अच्छी तरह नमाज अदा करने वाले रोजदार को अल्लाहताला से रजा व खुशी हासिल हो जाती है। इसी शुक्राने में ईद की नमाज अदा की जाती है। ईद वाले दिन सदक-ए-फितर हर साहिबे हैसियत मुसलमानों पर वाजिब है। अपने तमाम घर वालों की तरफ से पौने दो किलो गेहूं या उसकी कीमत के बराबर रकम गरीब, मिस्कीन, नादार में तकसीत कर दें ताकि हर मुसलमान खुशी और मुसर्रत के साथ ईद की खुशियों में अपना हिस्सा भी हासिल कर सकें। ईद के दिन आसमान में फरिश्ते आपस में बातें करते है कि अल्लाह ताला ने सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत के साथ क्या मामला किया? उन्हें जबाव मिलता है, मेहनत करने वाले को उनकी पूरी-पूरी मजदूरी दे दी जाती है जो अल्लाह की रजा व खुशनुदी की शक्ल में उस दिन लोगों को अता की जाती है।
पूरे महीने के रोजे के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करने और अपनी अदा अजरत अल्लाहताला से लेने के लिए ईद की नमाज अदा की जाती है क्योंकि अल्लाह ईद के दिन सारे रोजदारों की मगफिरत फरमाकर निजात का परवाना अताए फरमाता है। ईद की नमाज हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है और हमसब पर वाजिब है। इस दिन एक दूसरे से मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार किया जाता है।

Thursday, July 19, 2012

‘काका’ ने कहा ‘अलविदा’

अपने समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना का आज मुंबई में निधन हो गया. उन्होंने अपने घर पर अंतिम सांस ली. उनके पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी. खन्ना लंबे समय से बीमार चल रहे थे. कल सुबह 11 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा.


राजेश खन्ना बीते 1 अप्रैल से बीमार थे. कमजोरी की शिकायत के चलते उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हालांकि उन्हें चार दिनों में ही डॉक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी दे दी थी. राजेश से अलग रह रही उनकी पत्नी डिम्पल कपाडिय़ा बीमारी के बाद से ही उनकी देखभाल कर रही थी. उनकी बेटियां ट्विंकल, रिंकी, दामाद अक्षय कुमार और समीर शरण भी उनके साथ ही थे. 69 साल के अभिनेता को 23 जून को लीलावती अस्पताल में दोबारा भर्ती कराया गया था. तब उन्हें दो हफ्ते बाद अस्पताल से छुट्टी मिली थी. कमजोरी की शिकायत के कारण उन्हें शनिवार को लीलावती अस्पताल में तीसरी बार भर्ती कराया गया. लेकिन मंगलवार का डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी थी. 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना है.

1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में आखिरी खत नामक फिल्म में काम किया था.
इसके बाद राज, बहारों के सपने, औरत के रूप जैसी कई फिल्में उन्होंने की. लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में आराधना से मिली. एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया. 1971 में राजेश खन्ना ने कटी पतंग, आनंद, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, अंदाज नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराये रखा. बाद के दिनों में दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम, हमशक्ल जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं.राजेश खन्ना ने डिंपल से 1973 में शादी की थी और 1984 में वो अलग हो गए थे. राजेश खन्ना ने 90 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया. 1991 में वे नई दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर संसद सदस्य चुने गये. 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर पर अपनी दूसरी पारी शुरू की. आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, जाना, वफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली.

खून से लेटर लिखा करती थीं लड़कियां
किसी जमाने में करोडों जवां दिलों की धड़कन रहे हिन्दी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना ने अभिनय के अलावा फिल्म निर्माता और नेता के रूप में भी लोकप्रियता हासिल कीं. वह बॉलीवुड के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्हें देखने के लिए लोगों की कतारें लग जाती थीं और युवतियां अपने खून से उन्हें पत्र लिखा करती थीं. राजेश खन्ना ने कुल 163 फिल्मों में काम किया जिनमें 106 फिल्मों में वह नायक रहे और 22 फिल्मों में उन्होंने सहनायक की भूमिका अदा की. इसके अलावा उन्होंने 17 लघु फिल्मों में भी काम किया.

आनंद मरा नहीं आनंद मरते नहीं
बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता. जिंदादिली की नई परिभाषा गढऩे वाला हिन्दी सिनेमा का आनंद अब नहीं रहा लेकिन आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं. राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा. ऋषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर (लिम्फोसकोर्मा ऑफ इंटेस्टाइन) पीडि़त किरदार को जिस ढंग से उन्होंने जिया, वह भावी पीढ़ी के कलाकारों के लिए एक नजीर बन गया.

शोक की लहर
काका के निधन की खबर फैलते ही सैंकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसक उनके बांद्रा में कार्टर रोड स्थित उनके घर ”आशीर्वाद” के बाहर एकत्र हो गए. पीएमओ : राजेश खन्ना के निधन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दुख व्यक्त किया. नरेंद्र मोदी : राजेश खन्ना जी लोगों के दिलों पर राज करते थे, वे महान व्यक्ति थे. उनके आत्मा को शांति मिले!

स्मृति ईरानी : आरआईपी राजेश खन्ना…गुड बाय!

कैलाश खेर : हमारे पिता की पीढ़ी के सुपर स्टार इस दुनिया से चले गए. वे इस दुनिया के बाहर भी सुपरस्टार पुकारे जाएंगे. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे!

सुभाष घई : राजेश खन्ना के निधन से मुझे गहरा आधात लगा है, वे इस उम्र में मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे.

आशा पारेख : अभिनेता के रुप में वे सबसे महान थे. अब वे हमारे बीच नहीं हैं. हम लोगों के लिए दुख की घड़ी है.

आशा भोसले : उनके करोड़ों फैंस थे. वे जमीन से जुड़े इंसान थे. मुझे आज भी याद है, लड़कियां ही नहीं शादी शुदा महिलाएं भी काका को खून से खत लिखती थीं.

मौसमी चटर्जी : राजेश खन्ना ने अपने ही फेमस डायलॉग जिंदगी बड़ी होनी चाहिए…लंबी नहीं को चरितार्थ किया. मुझे यह विश्वास करने में कुछ समय लगेगा कि काका अब जिंदा नहीं है.

हेमा मालिनी : मुझे राजेश खन्ना से साथ काम करने की कुछ यादें आज भी ताजी हैं. आज हर किसी के लिए दुख का दिन है. अंदाज, प्रेमनगर इन दो फिल्मों में काका से साथ काम किया. काका निधन हिंदी फिल्म उद्योग के लिए बहुत बड़ी क्षति है.


Monday, July 16, 2012

महंगाई से बचने के लिए करते हैं डाइटिंग

कई बार बातों ही बातों में हम किसी गंभीर सवाल का भी मजाकिया जवाब देकर माहौल को खुशनुमा बना देते हैं. कई बार ऐसा करना लोगों को अच्छा लगता है, तो कई बार यह आदत भी बन जाती है. अगर आपको सवाल का जवाब आता है, तो ठीक और यदि आप बाल की खाल निकालने में हैं माहिर, तो और भी अच्छा.

आइवीएफ तकनीक से क्या समझते हैं?

आइवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन. नि:संतान दंपतियों के लिए इस तकनीक को एक वरदान के रूप में देखा जा रहा है. इस तकनीक के जरिए महिला में कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है. इस महत्वपूर्ण तकनीक की खोज रॉबर्ट एडवर्डस ने की थी, जिसके लिए उन्हें चिकित्सा विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. इससे जन्मे पहले बच्चे का नाम लुईस ब्राउन था, जिसका जन्म 25 जुलाई, 1978 को मैनचेस्टर में हुआ था.

आम बोलचाल की भाषा में आइवीएफ से जन्मे बच्चों को टेस्ट ट्यूब कहा जाता है.

रिकॉर्ड के मुताबिक पूरे देश में फिलहाल आइवीएफ के 400-500 के बीच क्लिनिक्स हैं और इनमें हर साल एक लाख दंपति आते हैं. आइवीएफ के लिए हेल्दी स्पर्म और एग डोनर्स की जरूरत होती है. हालांकि इस तकनीक से स्वस्थ बच्चे के जन्म को लेकर सवाल भी खड़े होते रहे हैं, लेकिन हाल के कुछ वर्षो में इसमें कई सुधार भी हुए हैं.

पिछले साल यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के वैज्ञानिकों की टीम ने एक नया सफल प्रयोग किया है, जिसमें बताया गया कि अब स्वस्थ बच्चे की मां बनने की संभावना कहीं ज्यादा हो गयी है. अब इस नयी तकनीक के जरिए बच्चा पाने के इच्छुक दंपती स्वस्थ भ्रूण का चयन कर सकेंगे. प्रत्येक दंपती के लिए आइवीएफ प्रयोगशाला में आठ से दस भ्रूण विकसित किए जाते हैं. उसके बाद भ्रूण द्वारा ग्लूकोज अवशोषण के आधार पर इनमें से एक भ्रूण का चयन कर महिला के गर्भाशय में स्थांतरित कर दिया जाता है. आइवीएफ तकनीक से बच्चे के जन्म पर दो लाख रुपये से अधिक का खर्च आ सकता है.


और ये रहे इसी सवाल पर आपके मजेदार जवाब

आइवीएफ का अर्थ है- इंस्टीट्यूट ऑफ वेरी फीस. इसके तहत संस्थानों में दाखिले के नाम पर मोटे डोनेशन वसूले जाते हैं.
मोमिना, जमशेदपुर

इस तकनीक से जनसंख्या नियंत्रित की जाती है.
अंकित, रांची

इवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) का नया वजर्न है आइवीएफ, जिससे फर्जी वोटों को पकड़ा जाता है.

मोनू, गया

डाइटिंग क्यों करते हैं?

आपने कई लोगों को अपना वजन कम करने के लिए डाइटिंग करते देखा या सुना होगा. यानी मोटापा कम करने के लिए अपने आहार को कम कर देना. डाइटिंग को लेकर सभी के अपने-अपने राय हो सकते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो खाना कम खाने से वजन नहीं घटता. आप क्या खाते हैं, यह बात आपके वजन को घटाने और बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती है.

अमेरिका के हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञों का इस बारे में कहना है कि सिर्फ कैलोरी पर ध्यान देने से कोई स्लिम नहीं हो जाता. सही वजन कायम रखने के लिए पौष्टिक और उच्च गुणवत्ता का भोजन करना चाहिए. विशेषज्ञों का मानना है कि वजन कोई एक दिन में नहीं बढ़ता, बल्कि इसे बढ़ने में कई साल लगते हैं.


हममें से ज्यादातर लोग शरीर में बढ़ी हुई चर्बी को कम करने के लिए केवल एक उपाय जानते हैं और वह है डाइटिंग करना. उन्हें लगता है कि जिस तरह अनाप-सनाप खाने-पीने से चर्बी बढ़ जाती है, उस के विपरीत खाना-पीना छोड़ दें तो चर्बी कम भी हो जायेगी. लेकिन विशेषज्ञों की राय में भूखा रहने से शरीर को मिलनेवाली ऊर्जा की सप्लाई बंद हो जाती है.

यह भी उतना ही खतरनाक है, जितना जरूरत से ज्यादा अनावश्यक चर्बी का बढ़ना. डॉक्टरों की राय में वजन कम करने के लिए बेहतर है संतुलित आहार लेना और व्यायाम की आदत डालना. आहार में दूध, फल-सब्जियों को शामिल करना और ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीना बेहतर है.
और ये रहे इसी सवाल पर आपके मजेदार जवाब

कमरतोड़ महंगाई से बचने के लिए हमें डाइटिंग करना पड़ता है.

हिमांशु शेखर (गया), मनिषा (मीरगंज), संजीव (मुजफ्फरपुर)

फाइटिंग से पहले डाइटिंग बेहद जरूरी प्रक्रिया है, जिससे दुश्मनों को हराया जाता है.

योगेश कुमार, भागलपुर